सोव है के जागे है नागण तेरो कंथ



सोव है के जागे है नागण तेरो कंथ
कोमल कृष्ण गेंद के कारण
कूद पड्यो जमुना मझधारण
कालीदे को भय नही मान्यो
कुदयो है निशंक
सोव है के जागे है......
तू बालक मोहे मती सतावे
तेरे रूप की दया जो आवे
सुत्या बासिक मती जगावे
सुतयो है निशंक
सोव है के जागे है......
नागण नाच जागती अपना
अब तू देर लगावे मत ना
तेर पति संग पाछी खेलूं
केसा बलवंत
सोव है के जागे है......
ऊँगली पकड़ कर बांह मरोड़ी
उठो नाग मे नागण तेरी
तेरी द्वारे ऊभो बैरी
रुदन करे
सोव है के जागे है......
सो सो बासिक ने कीन्हा
श्री कृष्ण ने अपने बस कीन्हा
फण फण पे पाँव रख दीन्हा
नृत्य करे
सोव है के जागे है.......
नाग नाथ हरि बाहर आये
नगरी के लोग तमाश आये
"सुखीराम" भाषा में गाये
चरणों में ध्यान
सोव है के जागे है नागण तेरो कंथ
बोल नाथ जी महाराज की जय
बोल कृष्णचंद्र भगवान की जय

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