सतगुरु सुल्झावेंगा

सतगुरु सुल्झावेंगा

सतगुरु सुल्झावेंगा
तेरे गले को हार जंजीरों रे, सतगुरु सुलझावेगा |
तेरे काया नगर में हीरो रे, हेरे से पावैगा ||

कारीगर का पिंजरा रे भाई , तने घडल्यायो करतार |
शायर करसी सोधना रे, मूरख करे रे मरोड़ |
रोष मन मायले में ल्यावेगा || १ ||

मन लोभी मन लालची रे भाई , मन चंचल मन चोर |
मन के मत में न चालिए रे , पलक पलक मन और |
जीव के जाळ घालावणा || २ ||

ऐसा नान्हा चालिए रे भाई , जैसी नान्ही दूब |
और घास जळ ज्यायसी रे , दूब रहेगी खूब |
फेर सावन कद आवेगा || ३ ||

साईं के दरबार में जी भाई, लम्बी खड़ी खजूर |
चढ़े तो मेवा चाख ले रे , पड़े तो चकनाचूर |
फेर उठण कद पावैगा || ४ ||

जैसे शीशी कांच की रे भाई, वैसी नर के देह |
जतन करंता जायसी रे, हर भज लावा लेय |
फेर मौसर कद आवेगा || ५ ||

चन्दा गुडी उड़ावता रे भाई, लम्बी देता डोर |
झोलों लाग्यो प्रेम को रे, कित गुडिया कित डोर |
फेर कुण पतंग उड़ावणा || ६ ||

ऐसी कथना कुण कथी रे भाई, जैसी कथी कबीर |
जलिया नाही, गडिया नाही रे , अमर भयो शरीर |
पैप का फूल बरसावेगा || ७ ||

तेरे गले को हार जंजीरों रे, सतगुरु सुलझावेगा,
तेरे काया नगर में हीरो रे, हेरे से पावैगा .....

जय श्री नाथजी की............

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